“दिल्ली चुनावी बस यात्रा: पुरुषों के लिए फ्री सुविधा और सड़कों की हालत पर उठे सवाल!”

रविवार को दोपहर करीब 1:30 बजे नरेला बस टर्मिनल पर मौसम सुहाना था, और लोग बसों का इंतजार कर रहे थे। एक नीली रंग की बस का डिस्प्ले “रूट नंबर 120” के रूप में ऑन हुआ और मोरी गेट के लिए खुली। बस चलते ही पुलिस थाना के पास ट्रैफिक जाम के कारण धीमी हो गई। बस में केवल 10-15 यात्री थे, और मेरे बगल में बैठे एक व्यक्ति से बातचीत शुरू हुई, जिनकी उम्र करीब 50-55 साल थी।

नरेला में जाम और अतिक्रमण की समस्या

मैंने उनसे चुनावी माहौल के बारे में पूछा तो उन्होंने नरेला इलाके की स्थिति के बारे में बताया। उन्होंने कहा, “बस में बैठते ही जाम शुरू हो गया, और यह जाम यहां से नहीं, बल्कि बवाना रोड से ही है। सालों से नरेला में अतिक्रमण पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। रोज़ाना आने-जाने वालों का सबसे बड़ा सहारा बस ही है।” उन्होंने बताया कि यहां मंडी भी लगती है, जिससे और अधिक परेशानी होती है।

दिल्ली देहात में कामकाजी हालात

मेरे सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने दिल्ली के देहात की स्थिति पर भी चर्चा की। “दिल्ली देहात में कोई काम नहीं हुआ है, गांवों में सड़कें टूटी-फूटी पड़ी हैं।” इस पर वहां बैठे अन्य लोग हंस पड़े, और एक अन्य व्यक्ति ने कहा, “मुझे तो इस बार बदलाव नजर आ रहा है।” लेकिन पहले व्यक्ति ने जवाब दिया, “परिवर्तन हो या न हो, अभी वाली सरकार मजबूत दिख रही है।”

महिलाओं का मतदान

बातचीत के दौरान यह भी सामने आया कि महिलाओं को मौजूदा सरकार से सीधे फायदे दिख रहे हैं। जैसे ही हम चौधरी रामदेव चौक के पास पहुंचे, बस में काफी लोग चढ़े और बस पूरी तरह से भर गई। एक महिला ने कंडक्टर से कहा, “भैया, पास दे दो।” यहां से एक नई चर्चा शुरू हुई।

फ्री यात्रा और पेंशन का मुद्दा

चर्चा के बीच एक और यात्री ने कहा, “अब इस सरकार के पास तो पैसे नहीं हैं। बुजुर्गों की पेंशन कहां से देंगे?” इससे पहले कि कोई जवाब आता, दूसरे यात्री ने कहा, “अगर पैसा नहीं है, तो केजरीवाल ने शीशमहल कैसे बना दिया?” इस पर कुछ यात्री और सक्रिय हो गए। एक ने कहा, “जो हाइवे और फ्लाईओवर बनाए हैं, उसे ही देख लो। यह सब किसने किया?”

सवारी दो हिस्सों में बटी

इस बातचीत के दौरान ऐसा महसूस हुआ कि सवारी दो हिस्सों में बंट चुकी थी। एक हिस्सा सरकार के कामों की तारीफ कर रहा था, जबकि दूसरा हिस्सा सरकार की नीतियों को लेकर निराश था। महिलाओं ने बातचीत में उतना उत्साह नहीं दिखाया, जबकि पुरुषों ने काफी रुचि दिखाई।

यह यात्रा न केवल चुनावी माहौल को समझने का एक तरीका था, बल्कि यह भी दर्शाती है कि दिल्ली के लोग सरकार की नीतियों और कामकाजी हालात को लेकर क्या महसूस कर रहे हैं।