राष्ट्रीय राजधानी के साथ देश में पेट्रोल व डीजल के दाम में लगातार बढ़ोत्तरी के बीच ट्रांसपोर्ट संगठनों ने केंद्र से गंभीर पहल की मांग की है। उनके मुताबिक वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के तहत लाकर पेट्रो पदार्थों के दाम घटाने की दिशा में राज्य सरकारों की चिंताओं को दूर कर उन्हें विश्वास में लाते हुए केंद्र को ठोस पहल करनी चाहिए।

क्यों उठी मांग?
गौरतलब है कि देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर चल रही हैं. कई शहरों में पेट्रोल 100 रुपये प्रति लीटर के पार है. इसकी वजह से यह मांग फिर जोड़ पकड़ रही है कि पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाए. असल में पेट्रोल-डीजल की कीमत में आधे से ज्यादा हिस्सा केंद्र और राज्य के टैक्स का ही होता है. उदारहण के लिए दिल्ली में 1 सितंबर को पेट्रोल का रेट 101.34 रुपये लीटर था, जिसमें से करीब 56 रुपये केंद्र और राज्यों का टैक्स ही था. ऐसा कहा जाता है कि पेट्रोल डीजल को अगर जीएसटी के दायरे में लाया गया तो दाम में भारी कमी आएगी.
इस पर केंद्र व राज्यों का एक-दूसरे के पाले में गेंद डालने की कोशिश सही नहीं है, क्योंकि इस बढ़ोत्तरी से आम लाेगों की जेब के साथ देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है। हाल ही में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने सफाई दी है कि केंद्र पेट्रो पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाकर उपभोक्ताओं काे राहत देना चाहती है, पर राज्य सरकारें ऐसा नहीं चाह रही है।

दिल्ली में पेट्रोल 105 के पार गया
मंगलवार को दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 105.84 रुपये प्रति लीटर तो डीजल 94.58 रुपये प्रति लीटर रहा। जबकि दिल्ली में पेट्रोल बिना टैक्स के कीमत 44 रुपये से थोड़ा ही अधिक है। ऐसे में तकरीबन 61 रुपये केंद्र उत्पाद शुल्क व राज्य सरकार वैट के रूप में आम लाेगों की जेब से निकाल रही है। यहीं हाल डीजल को लेकर भी है।

पेट्रोल डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग
दिल्ली गुड्स ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (डीजीटीए) के अध्यक्ष परमीत सिंह गोल्डी ने कहा कि ट्रांसपोर्टर के साथ आम लोग लगातार पेट्रोल व डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि अधिकतम जीएसटी शुल्क 28 फीसद तक ही हो सकता है। ऐसे में पेट्रोल का दाम बमुश्किल 60 रुपये ही होगा, लेकिन राज्य व केंद्र सरकारें इस विषय को अभी तक फुटबाल बनाकर रखा हुआ है। वहीं, इनके दाम आसमान छू रहे हैं। स्थिति यह कि कुछ माह की बढ़ोत्तरी के कारण माल ढुलाई की लागत 30 फीसद बढ़ गई है। इसका असर उपभोक्ताओं और ट्रांसपोर्टरों की जेब पर पड़ रहा है।
केंद्र का काम है राज्य सरकारों से सहमति बनाए

दिल्ली गुड्स ट्रांसपोर्ट आर्गनाइजेशन (डीजीटीओ) के अध्यक्ष राजेंद्र कपूर ने कहा कि यह केंद्र का काम है कि जिस प्रकार उसने राज्य सरकारों के साथ सहमति बनाकर जीएसटी कानून को लागू कराया उसी तरह पेट्रो पदार्थों को भी जीएसटी के दायरे में लाया जाना चाहिए। उन्होंने मांग करते हुए कहा कि सबसे पहले केंद्र सरकार को अपने उत्पाद शुल्क में कटौती करनी चाहिए तथा भाजपा शासित राज्यों में भी वैट कटौती की पहल होनी चाहिए। ऐसी स्थिति में दूसरे दलों द्वारा शासित राज्य सरकारों पर भी इसका नैतिक दबाव बढ़ेगा। इस संबंध में उन्होंने दिल्ली सरकार से भी ठोस पहल की मांग की है।